भारत की भूमि पर ऐसे कई धार्मिक पर्व और उत्सव हैं, जो न केवल धार्मिक आस्था के प्रतीक हैं, बल्कि सांस्कृतिक विरासत को भी जीवंत बनाए रखते हैं। ऐसा ही एक भव्य, ऐतिहासिक और अत्यंत श्रद्धा से परिपूर्ण पर्व है – श्री जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा, जो हर वर्ष उड़ीसा के पुरी शहर में बड़े ही उत्साह और भक्ति के साथ मनाई जाती है।
यह यात्रा भगवान श्रीकृष्ण, उनके भ्राता बलराम और बहन सुभद्रा को समर्पित होती है, जो विशेष रूप से सजाए गए विशाल रथों में सवार होकर पुरी के मुख्य मंदिर से निकलकर गुंडिचा मंदिर तक जाती है। यह यात्रा इस वर्ष 27 जून 2025 को निकाली जाएगी और करीब 10 दिनों तक चलने वाले इस महोत्सव में देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु पुरी में जुटते हैं।

कथा और परंपरा का आधार
एक बार भगवान श्रीकृष्ण की बहन सुभद्रा जी मायके (द्वारका) आई थीं और उन्होंने अपने भाइयों से नगर दर्शन की इच्छा व्यक्त की। श्रीकृष्ण और बलराम उन्हें रथ में बैठाकर नगर भ्रमण कराने निकल पड़े। इस स्मृति को अमर बनाए रखने हेतु रथ यात्रा की परंपरा प्रारंभ हुई।
गुंडिचा मंदिर को भगवान की मौसी का घर माना जाता है। यही कारण है कि तीनों देवता 10 दिनों तक यहीं निवास करते हैं। इस उत्सव को देखकर भक्त भावविभोर हो जाते हैं और इसे जीवन का दुर्लभ अवसर मानते हैं।
तीनों रथों की विशेषताएं और दिव्यता

रथ यात्रा के लिए हर वर्ष तीन विशाल रथ तैयार किए जाते हैं और यह निर्माण अक्षय तृतीया के दिन से शुरू होता है। खास बात यह है कि हर वर्ष रथों को नीम की लकड़ियों से बनाया जाता है, जिनमें नीम के शुभ पेड़ों का चयन विशेष प्रक्रिया से किया जाता है।
जगन्नाथ जी का रथ: इनका रथ 45 फीट ऊंचा होता है इसमें 16 पहिए होते हैं इसका व्यास 7 फीट का होता है पूरे रथ को लाल पीले कपड़े से सजाया जाता है इस रथ की रक्षा गरूड़ करता है इस रथ को तारुका चलता है रथ में जो झंडा लहराता है उसे त्रिलोक मोहिनी कहते हैं इसमें चार घोड़े होते हैं इस रथ में वर्षा, गोवर्धन ,कृष्ण , नरसिंहा, राम नारायण ,विक्रम ,हनुमान व रुद्र विराजमान रहते हैं इस रथ को जिस रस्सी से खींचते हैं उसे संखचूड़ानागिनी कहते हैं।
बलराम जी का रथ: बलराम जी का रथ 43 फीट ऊंचा होता है इसमें 14 पहिए होते हैं इसे लाल नीले हरे कपड़े से सजाया जाता है इसकी रक्षा स्वयं वासुदेव करते हैं इसे मताली नाम का सारथी चलता है इसमें गणेश, कार्तिक, सर्वमंगला , प्रलंबरी, अटायुद्ध, प्रत्यूजयन, नातामवर, मुक्तेश्वर ,शेषदेव विराजमान रहते हैं इसमें जो झंडा लहराता है उसे ऊनानी कहते हैं इसे जिस रस्सी से खींचते हैं उसे वासुकी नाग कहते हैं।
सुभद्रा जी के रथ: सुभद्रा के रथ में 12 पहिए होते हैं रथ 42 फीट ऊंचा होता है इसे लाल काले कपड़े से सजाया जाता है इस रथ की रक्षा जय दुर्गा करती हैं इसमें सारथी अर्जुन होता है रथ में चंडी चामुंडा आगरा तारा वंदुर्गा श्री दुर्गा व रही श्याम काली मंगल विमल विराजमान होती हैं इसे जिस रस्सी से खींचते हैं उसे स्वर्ण चूड़ानागिनी कहते हैं।
रथ निर्माण और शुद्धता की प्रक्रिया
तीनों रथों का निर्माण बिना किसी कील या लोहे के किया जाता है। ये पूर्णतः लकड़ी से निर्मित होते हैं। रथ बनने के बाद चरपैनरा अनुष्ठान होता है, जिसमें पुरी के गजपति राजा पालकी में सवार होकर आते हैं और सोने की झाड़ू से रथ मंडप की शुद्धि करते हैं। इसके बाद ही रथ यात्रा शुरू होती है।
भक्तों का जोश और गुंडिचा यात्रा का सौंदर्य
रथ यात्रा शुरू होने से 15 दिन पूर्व भगवान जगन्नाथ जी “बीमार” पड़ते हैं और एकांतावास में रहते हैं। पूर्ण रूप से स्वस्थ होने के बाद ही वे भक्तों को दर्शन देते हैं।
रथ यात्रा के दौरान पुरी नगरी जयकारों, शंख, ढोल-नगाड़ों से गूंजती है। श्रद्धालु अपने हाथों से रथ खींचने को सौभाग्य मानते हैं — मान्यता है कि ऐसा करने से जीवन की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

रथ गुंडिचा मंदिर पहुंचते हैं, जिसे भगवान की मौसी का घर माना जाता है। यहां 7 दिन तक भगवान विश्राम करते हैं, और इस दर्शन को “आड़प दर्शन” कहा जाता है। यहां भव्य मेला लगता है, महाप्रसाद बांटा जाता है और हजारों लोग दर्शन को आते हैं। एकादशी के दिन रथ वापसी होती है, जिसे बहुड़ा यात्रा कहा जाता है और अंत में भगवान की मूर्तियां गर्भगृह में पुनः स्थापित कर दी जाती हैं।